परमेश्वर को जानने का मार्ग — उद्धार क्यों ज़रूरी है?
यह कोई धर्म बदलने की बात नहीं है। यह किसी पंथ, जाति, संस्कृति या रस्मों की बात नहीं है।
यह जीवन के सच्चे उद्देश्य की बात है — एक जीवित परमेश्वर को जानने की बात, जो आपसे प्रेम करता है और जिसने आपके लिए अपने पुत्र को भेजा।
मनुष्य की सबसे बड़ी समस्या क्या है?
हम सभी एक पवित्र और न्यायी परमेश्वर द्वारा बनाए गए हैं।
उसने हमें प्रेम, शांति और संगति के लिए बनाया था — लेकिन हमने उसका मार्ग छोड़ दिया।
"सब ने पाप किया है और परमेश्वर की महिमा से रहित हैं।"
— रोमियों 3:23
"पाप की मज़दूरी मृत्यु है, परन्तु परमेश्वर का वरदान हमारे प्रभु यीशु मसीह में अनन्त जीवन है।"
— रोमियों 6:23
पाप केवल चोरी या झूठ बोलना नहीं है — यह एक स्थिति है, जिसमें हम अपने जीवन में स्वयं को मालिक बना लेते हैं। हम परमेश्वर की आज्ञाओं को तोड़ते हैं, अपने मार्ग चलते हैं, और उसका आदर नहीं करते।
चाहे हम अच्छे कर्म करते हों, धार्मिक अनुष्ठान निभाते हों, या दूसरों की सेवा करते हों — ये सब हमें परमेश्वर से जोड़ नहीं सकते। हमारा पाप हमें उसकी उपस्थिति से अलग करता है।
“तुम्हारे अधर्म ने तुम्हें परमेश्वर से अलग कर दिया है।”
— यशायाह 59:2
क्या परमेश्वर हमें यूँ ही छोड़ देता है?
नहीं।
परमेश्वर प्रेम है, लेकिन वह पवित्र और न्यायी भी है।
इसलिए, उसने स्वर्ग से नीचे उतरकर स्वयं हमारे लिए समाधान दिया।
परमेश्वर का पुत्र, यीशु मसीह, इस संसार में जन्मा — एक स्त्री से, पवित्र आत्मा की सामर्थ्य से।
उसने कभी पाप नहीं किया। उसने रोगियों को चंगा किया, लोगों को सिखाया, और परमेश्वर का मार्ग दिखाया।
लेकिन सबसे महत्वपूर्ण:
उसने स्वेच्छा से अपने प्राण दे दिए, ताकि हमारे पापों का दंड वह स्वयं उठा सके।
"उसने हमारी ही पीड़ाओं को सह लिया, और हमारे ही दु:खों को वह उठा ले गया...
वह हमारे अपराधों के कारण घायल किया गया,
हमारे अधर्म के कारण कुचला गया।"
— यशायाह 53:4-5
यीशु मसीह को क्रूस पर चढ़ा दिया गया — न केवल शारीरिक पीड़ा के लिए, परंतु परमेश्वर के न्याय का पूरा भार उस पर रखा गया।
उसने हमारे स्थान पर मृत्यु का दंड भुगता।
“वह जिसने पाप न किया, परमेश्वर ने उसे हमारे लिए पाप ठहराया,
ताकि हम उसमें परमेश्वर की धार्मिकता बन जाएं।”
— 2 कुरिन्थियों 5:21
लेकिन कहानी वहाँ समाप्त नहीं होती
तीसरे दिन, यीशु मसीह मृतकों में से जी उठा।
वह आज जीवित है। उसकी कब्र खाली है।
उसकी मृत्यु ने हमारे पापों का दंड चुका दिया,
और उसकी पुनरुत्थान ने हमें एक नया जीवन और पक्का आश्वासन दिया।
"यीशु ने कहा, 'मैं पुनरुत्थान और जीवन हूं। जो मुझ पर विश्वास करता है,
वह मर जाए तो भी जीवित रहेगा।'"
— यूहन्ना 11:25
उद्धार कैसे प्राप्त किया जाता है?
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क्या आप यह मानते हैं कि आपने अपने जीवन में पाप किया है?
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क्या आप यह समझते हैं कि कोई भी अच्छा कर्म उस पाप को मिटा नहीं सकता?
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क्या आप मानते हैं कि यीशु ने आपके पापों के लिए मृत्यु भुगती, और वह अब जीवित है?
तब परमेश्वर आपसे एक ही बात माँगता है:
"पश्चाताप करो, और प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास करो।"
— प्रेरितों के काम 16:31
पश्चाताप का अर्थ है:
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अपने पापों को पहचानना और उनसे मन फेरना,
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अपने जीवन के सिंहासन से उतरना, और यीशु को प्रभु बनाना,
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पाप से मुक्ति मांगना, और पवित्र आत्मा की सामर्थ्य से नया जीवन जीना।
यह कोई "धार्मिक बदलाव" नहीं है — यह एक नया जन्म है।
एक नया दिल। नया मन। नया मार्ग।
क्या तुम यीशु मसीह में विश्वास करना चाहते हो?
यदि तुम्हारा हृदय पश्चाताप में झुका है, और तुम यीशु को अपना प्रभु और उद्धारकर्ता मानते हो,
तो तुम आज ही उससे बात कर सकते हो।
एक नम्र प्रार्थना इस प्रकार हो सकती है:
"हे परमेश्वर, मैं जानता हूँ कि मैं पापी हूँ।
मैंने तुझसे मुँह मोड़ा है और अपने तरीके से जिया हूँ।
लेकिन आज मैं पश्चाताप करता हूँ।
मैं विश्वास करता हूँ कि यीशु मसीह ने मेरे पापों के लिए क्रूस पर मृत्यु भुगती, और वह अब जीवित है।
कृपया मुझे क्षमा कर। मेरा जीवन बदल दे। मुझे नया दिल दे।
मैं अब तेरा अनुयायी बनना चाहता हूँ। मुझे सच्चे मार्ग में चलना सिखा।
यीशु के नाम में, आमीन।"
🔔 ध्यान रहे: यह शब्दों का जादू नहीं है। यह विश्वास और समर्पण है जो परमेश्वर देखता है।
उद्धार केवल विश्वास से होता है — परंतु सच्चा विश्वास हमेशा जीवन बदल देता है।
अब क्या करें?
1. प्रतिदिन बाइबल पढ़ें।
यही परमेश्वर का वचन है। इसे गंभीरता से लें। मत्ती, मरकुस, यूहन्ना से आरंभ करें।
फिर रोमियों और 1 यूहन्ना पढ़ें।
2. प्रार्थना करें।
सच्चे मन से, सरल शब्दों में।
यह परमेश्वर से संबंध रखने का मार्ग है।
प्रभु आपका पिता बन गया है — वह सुनता है।
3. एक ऐसी मंडली खोजें जो बाइबल पर आधारित हो, जहाँ:
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यीशु मसीह ही उद्धार का एकमात्र मार्ग बताया जाए,
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अच्छे कर्म या धार्मिक परंपराओं पर निर्भरता न सिखाई जाए,
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मूर्तिपूजा, सन्तों की पूजा, या आत्मिक अनुभवों को परमेश्वर के वचन के ऊपर न रखा जाए,
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पश्चाताप, पवित्रता और आज्ञाकारिता को महत्व दिया जाए।
🙏 सावधान रहें:
भारत में बहुत सी मंडलियाँ या समूह हैं जो:
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ईश्वर के साथ अन्य देवताओं की पूजा को मिलाते हैं (syncretism),
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मसीहियत को केवल एक और “धार्मिक पहचान” के रूप में अपनाते हैं,
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केवल सामाजिक कार्यों या अच्छे जीवन पर केंद्रित रहते हैं, बिना वास्तविक आत्मिक उद्धार के।
4. बपतिस्मा लें।
यह एक बाहरी घोषणा है कि आप मसीह के अनुयायी बन गए हैं।
यह दर्शाता है कि आपकी पुरानी ज़िंदगी समाप्त हो गई, और अब आप एक नई सृष्टि हैं।
यदि आप कभी गिरें तो क्या?
सच्चा विश्वासी पाप में नहीं रहता — लेकिन अगर वह गिरता है,
तो परमेश्वर दया और क्षमा से भरपूर है।
"यदि हम अपने पापों को स्वीकार करें, तो वह विश्वासयोग्य और धर्मी है कि हमारे पापों को क्षमा करे और हमें सब अधर्म से शुद्ध करे।"
— 1 यूहन्ना 1:9
परमेश्वर का आत्मा आपके भीतर रहेगा, और आपको सामर्थ्य देगा पाप को अस्वीकार करने के लिए।
आप केवल क्षमा नहीं पाएंगे — आप एक नया जीवन जी सकते हैं।
स्मरण रखें:
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उद्धार केवल यीशु मसीह के द्वारा आता है।
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वह आपको क्षमा करता है, नया बनाता है, और एक दिन अनन्त जीवन देगा।
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सच्चे मसीही होने का अर्थ है:
हर दिन उसकी आज्ञा में चलना, उसे जानना, और अपने जीवन से उसकी महिमा करना।